FIRST LOVE
"तो क्या तू कल नहीं जाने वाली कॉलेज?"
"ना मेरा मन नहीं है।"
"हम सब कल शाम को पचमढ़ी जा रहे है, तैयार रहना।"
"नहीं यार कैंसिल मेरा सब कुछ।"
"क्या हुआ? नीलम तू बुझी सी क्यों है?
नीलम ने अपनी सहेली शिल्पा को कोई जवाब नहीं दिया।
"सुन ना, कुछ हुआ क्या उसके साथ?"
"नहीं"
"पता नहीं यार, मुझे कुछ नहीं पता और हाँ प्लीज स्टॉप, मुझे हेडेक हो रहा है।" सुनकर शिल्पा ने मुंह बनाया और नीलम बिना कुछ कहे कॉलेज-कैंटीन से निकलकर सीधे हॉस्टल चली गई।
"भाड़ में जाओ राहुल अब मैं कोई कॉल नहीं करने वाली तुम्हें।" सोचते हुए वह अपने बिस्तर पर गिर पड़ी। वह बेचैन थी लेकिन किसी को बता नहीं सकती थी। हॉस्टल में लड़कियों को बताना केवल समस्या बढ़ाता है। पता चलते ही लड़कियां उसके नाम से चिढ़ाना शुरू कर देतीं या ताने देतीं इसलिये उसने किसी से शेयर नहीं किया था। उसने एक बार नंबर लगाया लेकिन पूरी घंटी जाने के बाद भी फ़ोन नहीं उठाया गया।
"राहुल फोन क्यों नहीं उठा रहे? मुझसे बात करो प्लीज..." नीलम ने बोझिल मन से मोबाइल पर कोई मैसेज टाइप किया और इसके बाद उसे मिटा दिया। जब आप किसी को अपनी बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। जब मैसेज करते समय सोचना शुरू कर देते हैं या फिर कुछ अच्छा सा टाइप करते करते बीच में मिटा देते हैं तो आप प्यार में हैं। यही आज नीलम के साथ हो रहा था। उसकी आँखों से आंसू का झरना फूट रहा था लेकिन कोई भी उसे चुप कराने वाला नहीं था मम्मी-पापा बहुत दूर बसे हुए थे। वह खुद हॉस्टल में पड़ी हुई थी जहाँ अपना दर्द बताना खुद का मज़ाक उड़ाना था। वह घंटों यही सोचती रही कि क्या वह गलत कर रही या वह सचमुच गलत रास्ते पर थी। वह बिस्तर पर पड़ी ही रही।
"नीलम।" अपनी सीटी भरी मधुरतम आवाज़ से किसी ने पुकारा। यह उसकी सबसे करीबी सहेली सौम्या थी जो शायद हॉस्टल की सबसे प्यारी लड़की थी।
"उठो, खाना खाने चलो।"
"नहीं भूख नहीं है मुझे, और प्लीज मुझे आराम करने दो अभी।" वह अपनी रोनी सूरत किसी को दिखाने को तैयार नहीं थी।
"कोई बात नहीं मैं तुम्हारा खाना ला देती हूँ।" कहते हुए सौम्या ने नीलम की थाली उठाई और कुछ लड़कियों के साथ मेस की तरफ निकल पड़ी।
वापस लौटकर उसने थाली सुमन की टेबल पर रख दी।
"लो अब उठ भी जाओ यार खाना भी आ गया।"
"नहीं मैं बाद में खा लुंगी, तुम लोग खा लो अभी।"
"क्या हुआ बताओ हमें भी?"
"कुछ नहीं, अभी सिर दर्द हो रहा बस।"
सौम्या ने उठकर शेल्फ में रखा हुआ झंडू बाम उठाया और लेकर नीलम को लगाने लगी।
"कुछ आराम हुआ?" कुछ देर बाद सौम्या ने पूछा।
"हाँ कुछ कम हुआ है।"
"चलो खाना खा लो, मैंने भी नहीं खाया अभी।"
दोनों साथ बैठकर खाना खाने लगे।
सोते समय मोबाइल बजा लेकिन नीलम ने नहीं उठाया शायद वह शिल्पा का था जो कल की तैयारी करने के लिये फ़ोन लगाया था। कुछ देर बाद एक मैसेज भी आया लेकिन नीलम ने उसे भी नज़रंदाज़ कर दिया।
"फ़ोन क्यों नहीं उठाया? हम लोग अभी वापस लौटे हैं।" नीलम ने जैसे ही पढ़ा झट से फोन लगा दिया। आज दिनभर कोई बात नहीं हुई थी।
"हाय, कैसे हो?"
"तुमने आज सुबह फ़ोन नहीं उठाया और कुछ देर बाद तो लग भी नहीं रहा था।"
"हाँ।, उस समय में क्लास में थी।"
"हाँ, ठीक है, लेकिन मैसेज ही कर देते मुझे।"
"नहीं, तुम जानबूझकर भूले हो।"
"मुझे पता है, तुम क्यों ध्यान नहीं दे रहे हो?"
"अच्छा, कल निकल रहे हो ना पचमढ़ी के लिये। हम लोग कल शाम को निकल रहे हैं।"
"आ जाओ ना प्लीज।"
"ठीक है नहीं आ रहे तो वहीं रहो, जितना चाहे रहो, मेरा बैलेंस ख़त्म हो रहा है, अभी रखती हूं, बाय।" नीलम ने गुस्से से तुरंत फोन काट दिया।
"पता नहीं ये लड़के कैसे होते हैं। एक तो शुरू में जान छिड़कते हैं और फिर धीरे-धीरे इग्नोर करना शुरू कर देते हैं।" वह आँखें बंद किये सोच रही थी।
"और कहीं अगर उसने बीच में छोड़ दिया तो..." घबराहट में उसकी धड़कन अचानक बढ़ गई थी, "नहीं नहीं ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता वरना मेरा सबकुछ लुट जायेगा। मैं तो अंदर से ही टूट जाऊँगी। तो मैं क्या करूँ? उससे सब कुछ कह दूं या फिर उससे हमेशा के लिए दूरी बना लूँ?" बेचैनी से उसने करवट बदली और सिमटकर अपने दोनों हाथ ताकत से चेहरे में लाकर ढक लिये। उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। उसकी आँखों से इतनी तेज़ आंसू निकल रहे थे जैसे उसकी सबसे कीमती चीज़ छीनी जा रही हो। दुनिया का कोई भी व्यक्ति सटीकता से नहीं समझा सकता कि सैकड़ों मील दूर किसी एक इंसान के लिये इतनी प्रबल प्रेम भावना कैसे हो सकती है कि केवल याद में या दूर होने के गम में आंसुओ का समुन्दर उमड़ जाए। क्या प्यार इतना ईमानदार होता है जो अकेले में भी इतना गहरा असर डाले कि दूसरी बातों का होश ही ना रहे। खैर सिसकती नीलम को तो रात भर रोना ही था आखिर वह किसी को टूटकर जो चाहती थी।
सुबह लगभग छह बजे फोन बजा लेकिन उसने फोन को छुआ तक नहीं। घंटी लगातार बजने के कारण उसे फोन देखना ही पड़ा।
"हाँ मम्मा, मैं ठीक हूँ।" उसने रात भर के रुँधे गले से कहा। उसकी आँखें सूज गई थीं और जिस्म ढीला पड़ा हुआ था।
"नहीं, मुझे आवाज़ नहीं आई थी। अभी सुना तो उठाया।" वह जम्हाई लेते हुए बोली।
"जी, आज एग्जाम है इसलिए देर तक पढ़ती रही।" उसने एग्जाम ज़रूर बताया था लेकिन ये नहीं बताया कि आखिर कौनसी वजह थी जिसने उसे रात भर नहीं सोने दिया। लड़कियाँ तो कई बार लड़कों से मिलने को भी एग्जाम बता देती हैं ताकि कोई सवाल ना पूछे। प्यार होता ही ऐसा है जो मम्मी से भी झूठ बोलने की वजह बन जाता है और अगर आपने उनसे झूठ नहीं बोला तो समझो आपने प्यार ही नहीं किया।
"ठीक हूँ मम्मा। अभी और तैयारी करनी है बहुत सा बाकी रह गया है।" शायद वह और रो लेना चाहती थी या फिर बात करने के मूड में नहीं थी।
"आप भी अपना ख्याल रखना, बाय मम्मा।" कहते हुए नीलम ने फोन काटा और गहरी साँस लेकर आँखें बंद करते हुए बिस्तर में चुपचाप बैठ गई।
जारी है...
©अज़ीम