बंटवारा
(नाटक)
पात्र :- देवराज, दो सेवक, भगतसिंह, काम करने वाले कुछ लोग, दो सिपाही, सूत्रधार।
(मंच पर समूह में)
आओ सुनाएं तुम्हें कहानी,
ना कोई राजा, ना कोई रानी।।
देश धर्म की बात है जी,
बड़े मर्म की बात है जी।
देश बंटा और बंटी है दुनिया,
धर्म बंटे और बंटी है दुनिया।
वैसे सब हैं भाई-भाई,
देश धर्म से बनी है खाई।
दृश्य-1
(स्थान: स्वर्ग लोक)
स्वर्ग में भगतसिंह चुपचाप टहल रहे हैं। देवराज ने उन्हें उदास देख लिया।
देवराज : क्या बात है वीर, आप उदास दिख रहे हो?
भगतसिंह : नहीं, कुछ नहीं। (भगतसिंह ने अपनी भावना छिपाने का प्रयास किया।)
देवराज : अरे कहो, जल्दी कहो। स्वर्ग में दुख का कोई स्थान नहीं। अत: अपनी समस्या हमसे कहो। हमें भी तो पता चले कि ऐसा क्या हुआ जो तुम्हें चिंतित किये है?
भगतसिंह :मुझे अपने वतन भारत की याद आ रही है। क्या मैं एक बार अपना वतन देख सकता हूँ?
देवराज सोच में पड़ गए कि यदि इसकी पूरी नहीं हुई तो दुख होगा, किंतु स्वर्ग में कोई दुखी रहे यह तो स्वर्ग का अपमान होगा। भगतसिंह की इच्छा जानकर उल्टे उनकी चिंता बढ़ गई। धर्मसंकट में पड़कर आखिरकार उसने भारत जाने देने का निर्णय लिया।
देवराज : वह स्वर्ग ही क्या जिसकी कोई सीमा हो। देखो वीर वहां जितना चाहे रह सकते हो किंतु धरती में तुम्हारे एक बूंद भी आंसू नहीं निकलने चाहिये। आंखों में आंसू आते ही तुम स्वतः यहाँ वापस आ जाओगे।
दृश्य- 2
(स्थान: पृथ्वी, देश- पाकिस्तान, राज्य पंजाब)
आये स्वर्ग से भगतसिंह जब, सोच कर हिन्दुस्तान।
बंटा हुआ था एक हिस्सा, जो बना था पाकिस्तान।।
आंख बंद करते ही एक झटका लगा और वह अपने गांव बाँगा, लायलपुर के मैदान पहुंच गये। घूमने निकले तो देखा कि कई लोग काम में व्यस्त हैं।
भगतसिंह : अरे यहाँ तो आसपास एक भी अंग्रेज नहीं दिखाई दे रहे। ज़रूर हमारा देश आज़ाद हो गया।
सूत्रधार - वे प्रसन्न थे कि लोग उनकी शहादत को भूल नहीं, उन्हें अब भी जानते हैं, किन्तु लोग उनके मजबूत शरीर और तेज़ से चमकते चेहरे पर तीखी मूंछ के साथ सिर में टोपी देख उन्हें अभिनेता समझकर मुस्कान से स्वागत कर रहे थे।
एक व्यक्ति : भगतसिंग, राईट?
भगतसिंह : (खुश होकर) राईट, सही पहचाना।
दूसरा व्यक्ति : की मस्त एक्टिंग कारियासी पाज़ी। सानू कौनसी फिल्म आंदी ए तेनु?
भगतसिंह : मगर मैं तो...
तीसरा व्यक्ति : भगतसिंह ना, बिलकुल सेम टू सेम वैसे ही दिख रहे हो।
सूत्रधार- वे समझ गए कि लोग उन्हें बहरूपिया समझ रहे हैं। जब आसपास उनकी पहचान का कोई व्यक्ति नहीं दिखा तो वे लाहौर निकल पड़े।
दृश्य-3
(स्थान : लाहौर, देश, पाकिस्तान)
थे विस्मित भगतसिंह, जब देखा चारों और।
पलक झपकते पहुंच गये थे, वे सीधे लाहौर।।
बलिदानी का था शहर, उबल पड़ा फिर रक्त।
त्यौरी चढ़ गई आँखों की, हाथ हो गए सख्त।।
धड़की ज्वाला क्रांति की, मचा था हाहाकार।
फाँसी की वह स्मृति, घूम रही इस बार।।
सूत्रधार - जब वे लाहौर पहुँचे, वहां का सामान्य जन-जीवन देखकर प्रसन्न थे। लोग भी ख़ुशी से अपने कार्य में व्यस्त थे। चलते-चलते उनकी नज़र किले की तरफ गई। हरे और सफ़ेद रंग में चाँद सितारे वाले झंडे देखकर एक बार फिर उनका ह्रदय वुझ गया।
भगतसिंह : (सोचते हुए) अरे यहाँ हरे झंडे। कुछ तो गड़बड़ है, चलो दिल्ली चलकर देखा जाए।
दृश्य - 4
(स्थान - पाकिस्तान-भारत की सीमा)
दिल्ली जाने निकल पड़े, जैसे थे हर बार।
रोक लिया जवान ने, पूछे भेद अपार।।
जगह-जगह पर थे खड़े, हाथ में बंदूकधारी।
या थे बिलकुल देशभक्त, या थे भ्रष्टाचारी।।
रास्ते में बॉर्डर में तलाशी हो रही थी।
पहला सिपाही : कहां जाना है?
भगतसिंह : दिल्ली जाना है।
सिपाही : पहचान दिखाओ अपनी।
भगतसिंह : अरे दिल्ली जाने के लिये पहचान कैसी?
दूसरा सिपाही : क्यों, तन्ने मालूम नहीं, बॉर्डर क्रॉस करने में पहचान और वीजा लागे है।
भगतसिंह : बॉर्डर कैसी बोर्डर?
दूसरा सिपाही : (समझाते हुए) देख ये पाकिस्तान, और वो हिन्दुस्तान
भगतसिंह : पाकिस्तान हिन्दुस्तान तो फ़िर भारत कहां है?
पहला सिपाही : है नहीं था।
भगतसिंह : क्या?
दूसरा सिपाही : हाँ, जो भारत था ना वो बँट गया। (हाथ से में रखी एक लकड़ी तोड़कर) ऐसे।
भगतसिंह : (आश्चर्य से) ऐ, ऐसा कैसे हो सकता है?
दूसरा सिपाही : हो सकता नहीं हो गया।
भगतसिंह : तो क्या मैं उस पार नहीं जा सकता?
दूसरा सिपाही : जा सकता है ना पर पहले पहचान और वीजा तो बता। (कुछ पल रूककर) यार मगर तू इतना पूछ क्यों रहा है तू कोई जासूस तो नहीं दूसरे मुल्क का? अब चल, पहले बता तू है कौन?
भगतसिंह : भगतसिंह!
दूसरा सिपाही : भगतसिंह, हाँ दिखाई तो भगतसिंह जैसे ही दे रहा है मगर तेरा नाम क्या है?
भगतसिंह : कहा ना भगतसिंह, पिता का किशनसिंह और माता का विद्यावती और...
दूसरा सिपाही : बस बस बस, ठीक है, वीजा पासपोर्ट वगैरह कुछ है?
भगतसिंह : ये सब पहले तो नहीं लगते थे.
पहला सिपाही :नहीं लगते थे मगर अब लगते हैं, है क्या?
भगतसिंह : नहीं है।
दूसरा सिपाही : तो फ़िर कागज है?
भगतसिंह : कौनसा कागज़?
पहला सिपाही : (कान के पास जाकर धीरे से) बीस हज़ार लगेंगे सेटिन्ग के, दस यहां और दस वहां।
भगतसिंह : मेरे पास तो पैसे भी नहीं हैं.
दूसरा सिपाही : (धमकाते हुए ) पैसे नहीं हैं, तो फ़िर खडे-खडे यहां मुंह क्या देख रहा। आगे गये यहाँ से गोली चल जायेगी और यहाँ से बच गए तो उस पार का जवान गोली से उड़ा देगा।
सूत्रधार - ऐसी परिस्थिति देखकर दुःख के मारे भगतसिंह की आँखों से आँसू छलक गए और अगले ही पल वे वापस स्वर्ग में थे।
दृश्य - 5
(स्थान : स्वर्गलोक)
लग जाते हैं कभी-कभी, शब्दों के भी तीर।
बचना संभव ही नहीं, कितने भी हों वीर।।
गए थे जैसे भगतसिंह, फिर वैसे ही आये।
साथ में प्रश्नों की झड़ी, सिर जिससे चकराये।
देवराज : (आश्चर्य से) अरे, इतने जल्दी आ गए वीर वहां से?
भगतसिंह : ऐसा कैसे हो सकता है? मेरा देश दो टुकड़े में कैसे बँट सकता है? हमने इसके लिए तो अपना बलिदान नहीं दिया था। हमने तो कभी धर्म अथवा देश के लिए संघर्ष नहीं किया।
देवराज : वीर वह पृथ्वी है, क्योंकि वहाँ दुःख है। पृथ्वी में देश हैं, देश में राज्य हैं, राज्य में राजनीति है। राजनीति में स्वार्थ है, स्वार्थ में बँटवारा है और बँटवारे में दुःख है। वहाँ दुःख है इसलिए वह पृथ्वी है।
सूत्रधार - तो दोस्तों! देखा आपने कि देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले महान वीर किस विचारधारा के साथ अपना बलिदान देते हैं जबकि हम आम लोग केवल धर्म और क्षेत्र के बँटवारे के लिए ही लड़ते रहते हैं।
(18 जनवरी 2016 की रचना)
लेखक - अज़ीम