"राहुल आज हमें कहीं चलना है। शाम का भोजन है वहां।" सौरभ आते ही बोल पड़ा।
"ठीक है, लेकिन अभी तो चार ही बजे हैं, काफी टाइम है हमारे पास।"
"नहीं बिलकुल नहीं। गार्डन है वहां घूमने में ही टाइम हो जायेगा और वहां कुछ ऐतिहासिक इमारतें भी हैं।"
"वाह, ये सब भी है यहाँ।"
"हाँ, अब जल्दी करो।" कहते हुए सौरभ एक बार फिर तैयार होने लगा। राहुल भी उसके साथ था।
"तू कभी टाइम पे रेडी होगा? अभी तक तेरी आदत नहीं गई।"
"बस थोड़ी देर और।" लेकिन राहुल आलसियों की सारी सीमायें तोड़कर समय लगा रहा था।
"जल्दी, मतलब जल्दी।" सौरभ को खीझ हो रही थी।
कुछ देर में दोनों निकल पड़े। राहुल रास्ते में आसपास घूरते जा रहा था।
"अरे यह क्या? यह तो गेट है।"
"हाँ।"
"हरा भरा शानदार पार्क और बगल में तालाब भी।"
दोनों एक झूले में बैठकर बातें कर रहे थे तभी राहुल का मोबाइल वाइब्रेट हुआ। राहुल ने मोबाइल जेब से निकालकर देखा और मुंह बनाते हुए वापस रख लिया।
"क्या हुआ?"
"कुछ नहीं।" जबकि राहुल सोच रहा था कि नीलम को इस समय मैसेज करने की क्या ज़रूरत थी, आखिर कुछ दिन आराम से तो दोस्त के साथ बिताने को तो मिल जाता।
"हूँ, शाम हो चुकी है और हमें वहां जाना भी है।"
"ठीक है बैठने से बेहतर निकला जाये।
वे लोग धीरे धीरे एक ऊंची बाउंड्री वाले घर में जा रहे थे।
"ये क्या है, इतना बड़ा घर! किसी महल सा लगता है, जैसे किसी फिल्म की शूटिंग होने वाली है।"
"हाँ यह यहाँ का सबसे स्पेशल घर है।"
"तो हम इसे देखने जा रहे हैं।" पास पहुँचते ही राहुल बोल पड़ा,
"भंसाली बैनर की शूटिंग है क्या? बड़ा विशाल लग रहा सब कुछ।"
वह महलनुमा घर के सामने लगे मंद हवा में लहराते अशोक वृक्षों को निहारते रहा। वे मुख्य द्वार की तरफ बढ़ने लगे, तब तक राहुल रिचार्ज हो चुका था।
"अंदर जाने की परमिशन लेनी पड़ेगी क्या?"
सौरभ ने कोई जवाब नहीं दिया। तब तक वे पहुँच चुके थे। एक आदमी ने उन्हें अंदर बुलाया। पोशाक से वह नौकर मालूम होता था। अंदर प्रवेश करते समय राहुल की धड़कन तेज़ हो चुकी थीं।
"ये, ये अंदर क्या हम लोग यहाँ आये हैं?"
"हाँ यहीं।"
"तो क्या हमारा खाना यहाँ है आज?"
"हाँ, यहीं तो है।"
राहुल आँखें फाड़कर दीवार में टंगी राजसी तस्वीरें देख रहा था। उसे उसके साथ ही जानवरों के सींग भी सजे हुए दिखाई दिए। लकड़ी की कुर्सियों में बारीकी से नक्कासी की गई थी।
एक बार फिर राहुल का मोबाइल घनघनाया। लेकिन उसने कोई हरकत नहीं की। तभी एक लड़की पानी लेकर आई।
"नमस्ते सर।" उसने कहा और पानी का ट्रे आगे बढ़ाया।
सौरभ ने जवाब तो दिया लेकिन जैसे ही राहुल की नज़र उसके चेहरे पर पड़ी वह ठिठक गया। उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गईं। उसे ऐसे झटका लगा जैसे किसी ने करंट वाली कुर्सी में बिठाकर बटन दबा दिया हो। वह उछलकर अपने स्थान से खड़े हो गया।
"बैठिए ना आप, पानी लीजिये।"
"तुम, तुम नीलम हो ना।" राहुल ने अटकते हुए पूछा।
"जी, लेकिन?" हैरान होने की बारी उस लड़की की थी। राहुल के मुंह से नीलम का नाम सुनकर सौरभ भी चौक गया।
"तुझे कैसे पता?" सौरभ ने राहुल की तरफ घूरा। तब तक वह लड़की जा चुकी थी।
"सामने के गर्ल्स स्कूल में देखा था।"
"वो तो मुझे भी पता है लेकिन तुझे इसका नाम कैसे पता?"
"देख कल ना मैं पानी के लिए बोतल लेकर हैंडपंप गया था..." और वह उस दिन की घटना बताते चला गया।
कुछ देर तक ख़ामोशी छाई रही।
"लेकिन मुझे नहीं पता था कि यह इतनी बड़ी फैमिली से होगी। इनफैक्ट मुझे तो ये भी नहीं पता कि भंसाली बैनर हाउस यहाँ कैसे आ गया।" वह आसपास देखते हुए बोलते जा रहा था।
"ये भी है इनके पास?" राहुल थूक गटकते हुए बोला। उसे अन्य दीवार पर कुछ भाले, बर्छी और तलवार, बन्दूक नज़र आ गए थे। एक विशालकाय ढाल भी दीवार पर टंगी हुई थी। उसे लग रहा था कि मौका मिलते ही वह भाग जाए लेकिन उन्हें भोजन तक वहीँ ठहरना था।
"और भी हैं अंदर..." सौरभ बोला।
कुछ देर तक शांति छाई रही।
"सौरभ, इन लोगों से कैसे पहचान है तेरी?"
"इसकी छोटी बहन स्टूडेंट है।"
"ओह आई सी।" अब राहुल की जान में जान आई।
तभी उसके माता-पिता और एक बच्ची भी आई जो सौरभ की छात्रा थी। उनके बीच अभिवादन के साथ बातचीत शुरू हो गई।
"ये हैं राहुल, मेरा स्कूल दोस्त अभी इंजिनीरिंग कर घूमने आया है।" सौरभ मुस्कुराते हुए परिचय दे रहा था। वे सभी बातचीत में व्यस्त हो गए।
राहुल उठकर बाहर गया उसका मोबाइल वाइब्रेट हो रहा था।
"हेल्लो।"
"मैं ठीक हूँ।" वह दबी आवाज़ में बोल रहा था।
"हाँ।"
"हाँ।"
"देखा था।"
"सोचा बाद में रिप्लाई दे दूँगा।"
"नहीं, नहीं हम लोग बाहर हैं, दोस्त के साथ निकले है। खाना भी है।"
"नहीं यार कैसी बाते करती हो। कुछ दिन तो रुक जाओ फिर तो आ ही रहा हूँ ना।"
"पक्का, जल्दी आने की कोशिश करता हूँ, ओके!"
"टेक केयर।" कहते हुए राहुल ने फोन काट दिया।
राहुल अब दो नीलम के बीच फँसा हुआ था। एक गर्ल्स स्कूल में दिखकर खून बढ़ाने वाली और दूसरी बार-बार फोन करके खून चूसने वाली।
कुछ देर बाद राहुल वापस उनके पास बैठ गया।
"किससे बात हो रही थी?"
"नीलम।" राहुल के मुंह से निकले शब्द सुनते ही सौरभ उसे देखने लगा।
"नहीं, नहीं कंफ्यूज मत होना, मेरी एक फ़्रेंड है यार।" राहुल को लगा जैसे वह फंस गया हो।
सौरभ उसे और आँखें फाड़कर देखने लगा। उसने कभी उसका ज़िक्र भी नहीं किया।
"बता दूँगा बाद में सब। अब खुश।"
सौरभ ने म्यूट में चल रही टीवी की रिमोट से आवाज़ बढ़ाई और उसमें अपना समय काटने लगे।
राहुल उठकर हॉल के चक्कर लगाने लगा।
"अरे कबूतरखाना।"
"संग्रहालय है वो।" सौरभ चिल्लाया।
"हाँ होगा, लेकिन इसमें चाँदी के कबूतर हैं इसलिए कहा।" वह उसके सामने खड़े होकर ध्यान से देखने लगा। कई सारी प्राचीन वस्तुएं थीं। सोने, चांदी, ताँबे के विभिन्न सिक्के एक से एक वस्तुएं जो उत्कृष्ट नमूने की मिसाल बनी हुई थीं।
"वो सोने के सिक्के रखे हैं, असली हैं क्या?"
"नहीं नकली हैं।" सौरभ बोला।
"और ये बिस्कुट?"
"सब नकली हैं।"
"इस चाँदी के रथ को छूकर देखूँ?"
"हाँ देख लीजिए। ये हमारे दादाजी के खिलौने थे। और भी कई वस्तुएं हैं यहाँ नहीं रखी गई।"
"ओह!" नीलम के आते ही राहुल कुछ दूर सरक गया। वह उन्हें गौर से देखते रहा लेकिन उसे हाथ में लेने का प्रयास नहीं किया। और भी कई वस्तुएँ से वह कई तरह के हथियार समझ रहा था जिनका नमूना वह पहले ही देख चुका था।
"अच्छा, तुम तो राजकुमारी हो।" वह उसके चमकते चेहरे को काफी करीब से देखकर सम्मोहित हो रहा था। उसे उसमें इतना आकर्षण था कि उसका बस चलता तो वह अपने दिल की बात उसे ज़रूर कह देता लेकिन उसकी तो जुबान भी सिल गई थी। प्राचीन कलाकृति की उत्कृष्टता के बीच उस जीवित कलाकृति को वह लगातार निहार रहा था।
"भोजन तैयार है, चलिए।"
"थोड़ी देर और देख लूँ।" राहुल उन वस्तुओं को कम नीलम को ज़्यादा देखना चाहता था। वह उसे काफी देर तक निहारते रहा।
"देखकर हो गया?" सौरभ ने पूछा जिसका ध्यान टीवी की तरफ था।
"हाँ, बहुत सारी सुन्दर और कलात्मक वस्तुएँ रखी हैं यहाँ। बार-बार देखने का मन कर रहा।"
"पहले पंख से लिखते थे क्या?"
"हाँ, वो दवात है ना उसमें डुबाते थे।"
"ओह, तुमने कभी लिखा?"
वह केवल मुस्कुरा दी। राहुल उसे देखते रहा। उसे भी नहीं पता कि उसका कितना खून बढ़ चुका था।
"ये जो पोस्टर है यही हैं आपके दादाजी?"
"हाँ"
"महाराजा...वीर तेवरसिंह!"
"चलिए अब, नहीं तो भोजन ठंडा हो जायेगा।"
सौरभ सोफे से उठ चुका था और राहुल को भी सब बीच में छोड़ना पड़ा।