FIRST LOVE
(यदि आप पिछले सभी भाग पढ़ चुके हैं तो एपिसोड 6 से आगे...)
नीलम किसी तरह बचकर सीधे हॉस्टल पहुँची। उसका दिल अभी भी धड़क रहा था। वह घबराई हुई बिस्तर में लेटकर कुछ समय पहले की घटना याद कर रही थी।
"क्या, क्या नाम बताया था उसने..." वह सोच रही थी, "राहुल, हाँ याद आया। यही तो बताया था।"
"लेकिन... कैसा होगा वह अभी..."आँखों में अचानक वह तस्वीर उभरी जो उसने आखिरी बार देखी थी, "ओह, ओह गॉड। ये क्या हो गया मुझसे?
उसे वह चेहरा नज़र आ रहा था जो हाथापाई में पसीने से नहा गया था। उसके बाल बिखरकर सामने आ चुके थे और हाथ में चोट लगने से खून निकल रहा था। उस समय भयानक डर से उसकी कोई खबर नहीं ले पाई थी।
अगले दिन सहमी हुई नीलम अपनी सहेली शिल्पा के साथ राहुल की तलाश में काफी समय पोर्च पर खड़ी रही लेकिन वह दिखाई नहीं दिया।
"लगता है आज नहीं आएगा।" शिल्पा खड़ी-खड़ी बोर हो गई थी। नीलम ने उसे पहले ही सब कुछ बता दिया था।
"थोड़ा और वेट करते हैं ना।"
"अभी क्या कम वेट किया है उसका?"
"हाँ लेकिन फिर भी। शायद आ जाये।"
लेकिन राहुल का कोई पता नहीं था। दोनों काफी देर तक वही रुके रहे।
"और तो नहीं रुकना है।" शिल्पा खीझ रही थी।
"ठीक है चलते हैं अब।" वे क्लास में जाकर बैठ गए। रोनी और उसके दोनों साथी गायब थे।
शिल्पा का ध्यान जब उनकी खाली बेंच की तरफ गया तो वह नीलम की तरफ देखकर मुस्कुराने लगी।
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(कैंटीन में...)
"सुनिए, कैसे हैं आप?" टेबल के पास जाकर नीलम ने पूछा। राहुल ने उसे ध्यान से देखा।
"अरे तुम, आओ बैठो यहाँ।" राहुल सोच रहा था कि इसी लड़की की वजह से वह बाल-बाल बचा था और जब वह ढाल बनकर बीच में खड़ा था उसी समय अगर वे लड़के भाग ना गए होते तो वह आज यहाँ बैठा ना होता। उनके हाथ में चमचमाते धारदार हथियार अब भी आँखों में चुभ रहे थे।
"हाथ दिखाइए आपका।" उसने कहा, "आपको ज़्यादा तो नहीं लगा ना।"
"नहीं, थोड़ी सी खरोंच थी बस।" राहुल बोला जबकि अभी भी उसका शरीर दर्द से अकड़ा हुआ था। आखिर तीन लोगों से वह अकेले जो निपटा था।
"थैंक यू राहुल सर, फॉर सेविंग मी।"
"माय प्लेज़र। बाय द वे, सामने की चेयर खाली है अगर बैठना चाहो तो..." राहुल ने बैठने का इशारा किया।
"थैंक्स, आपकी वजह से मैं आज सलामत हूँ।" कहते हुए वह बैठ गई।
"विल यू स्टॉप प्लीज?" वह पिछली घटना याद नहीं करना चाह रहा था, "एनीवे तुम अभी क्या लेना पसंद करोगी मिस सो एंड सो।" वास्तव में राहुल को अभी तक उसका नाम पता नहीं था।
"ओह..." नीलम को जब एहसास हुआ तो वह मुस्कुराई, "माइसेल्फ नीलम भार्गव, कम्प्यूटर साइंस, फर्स्ट ईयर।" पहली बार उसने नाम बताया था।
सुनकर राहुल को झटका लगा जैसे उसने इलेक्ट्रिकल ब्रांच लिया हो। उसका नाम भी व्यक्तित्व उभार रहा था। वह सोच रहा था कि शायद फ़ोन नंबर भी बता दे लेकिन वह इतना जानता था कि जब लड़कियाँ शुरुआत करती हैं तो यह सब आसान होता है।
"कंप्यूटर साइंस, ग्रेट, बढ़िया सब्जेक्ट चुना है तुमने बहुत स्कोप है इसमें।"
"थैंक यू।"
"चाय लोगी?" राहुल ने ऑफर किया। वह उसे कुछ देर और बिठाना चाहता था।
"नहीं, अभी पिया है मैंने।" उसने मना किया।
राहुल मुस्कुराया। उसने कुछ ही देर पहले एक सहेली के साथ अंदर आते देखा था जो अब भी उसका इंतज़ार कर रही थी तो ज़ाहिर सी बात थी कि उसने चाय नहीं पी थी।
"एक काम करो, अपनी फ्रेंड को भी यहाँ बुला लो, साथ में चाय पीते हैं।"
"ओह, हाँ सॉरी, मैं यहाँ बैठने नहीं आई थी। मैं तो बस... और आपने यहाँ बिठा लिया।" उसने इशारे से पास की टेबल पर बैठी शिल्पा को बुलाया।
"दिस इज़ माय फ्रेंड, शिल्पा।" नीलम द्वारा परिचय देते ही उसने हाथ से इशारा किया।
"हाय।" शिल्पा ने देखते ही कहा।
"हाय, बैठो यहाँ आकर।"
"तुम भी इलेक्ट्रिकल?"
"नहीं नहीं हम कंप्यूटर साइंस वाले हैं।"
"आ... हाँ, मैं ही थोड़ा कंफ्यूज हो गया था।" राहुल ने उसका चेहरा देखकर कहा। वह जानता था कि जिस बात को लेकर एक बार गड़बड़ी हो जाती है, वही आगे भी होती रहती है।
"हाँ, अब ठीक है।"
"लो चाय लो।" उसने एक कप नीलम की तरफ सरकाया।
"थैंक यू।" नीलम का ध्यान उसके हाथ में था। वह चुस्की लेते हुए उसकी चोट के बारे में सोच रही थी। उसने अपना हाथ धीरे से उसके हाथ में लगाया।
"आह..." वह अंदर ही अंदर कसमसाकर रह गया। उसके स्पर्श में दर्द नहीं सुमन का एहसास था जो कभी खिड़की की कांच फोड़कर घायल हुए हाथ से हीरो बना था। उसने आँखें बंद की और नवोदय के अतीत में खो गया।
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"कहाँ हो, मैं कब से तुम्हारा वेट कर रहा हूँ।" नीलम ने मोबाइल में मैसेज पढ़ा।
"बस यहाँ से निकल रही।" उसने फटाफट मेसेज टाइप कर भेज दिया।
कुछ ही देर में वह एक रेस्टॉरेंट के सामने थी जहाँ राहुल बेसब्री से चहलकदमी करते हुए इंतज़ार कर रहा था।
"हाय!" नीलम मुस्कुराते हुए बोली।
"पूरे तीस मिनट लेट हो तुम।" राहुल उतनी देर में जाने कितने कदम चल चुका था और वो तीस मिनट उसके लिए दिन भर से कम नहीं थे।
"सॉरी।" उसने मोबाइल में समय देखा। हालाकि वह कहना चाहती थी, "ओह, सिर्फ तीस मिनट शुक्र है। तुम्हें नहीं पता राहुल कि लड़कियों को तैयार होने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है। कितनी सारी ड्रेसेस देखनी पड़ती है और मेकअप में भी कितना ध्यान रखना पड़ता है। तुम्हें कैसे पता हो सकता है, तुम तो लड़के हो ना।" इतना समय भी उसने सुबह एक घंटे जल्दी उठकर बचाया था।
"ठीक है कम से कम तुम आ तो गईं।" राहुल ने आगे कहा, "लेकिन अब देर मत करो हम लोग अंदर बैठते हैं।
"हाँ बिलकुल।"
वे दोनों रेस्टॉरेंट की सीढ़ियां चढ़ने लगे। आगे-आगे नीलम और उसके पीछे राहुल था। दोनों जाकर एक राउंड टेबल के आमने सामने बैठ गए।
"तो क्या पसंद करोगी?" राहुल आज सब कुछ नीलम की पसंद का खाना चाहता था।
"मैं, थोड़ा रुको फिर देखते हैं।" नीलम ने टेबल पर रखी पानी की गिलास उठाई। उसकी नज़र राहुल की तरफ थी। उसमें वैलेंटाइन गिफ्ट की उत्सुकता भरी हुई थी। जो राहुल के हाथ में नज़र नहीं आ रहा था। उसके लिए आज रेड रोज़ से ज़्यादा कीमती कोई गिफ्ट ही नहीं था।
"कुछ तो बता दो अभी।" राहुल खुद आर्डर कर देता लेकिन आज वह सिर्फ उसका आर्डर चाहता था।
"मसाला डोसा चलेगा।" उसने एक घूट पानी पीकर गिलास वापस टेबल पर रखते हुए कहा।
"मसाला डोसा, जल्दी।" वेटर को आर्डर किया। उसे ज़ोर की भूख लगी थी और ईमानदारी से कहा जाए तो सुबह से उसने एक गिलास पानी तक नहीं लिया था जबकि लड़कियां तो व्रत रखने की आदी होती हैं। नीलम का चेहरा खिले गुलाब की तरह दिख रहा था और राहुल मुरझाए बेशरम फूल की तरह उसकी तरफ टकटकी लगाए बैठा था। उसे नीलम बहुत खूबसूरत लग रही थी। काजल के कारण उसकी आंखें और भी गहरी और बड़ी नज़र आ रही थीं।
"वैसे एक बात कहूँ?" अब जाकर राहुल ने गिलास हाथ में लिया था।
नीलम उसे केवल हाँ का इशारा कर पाई।
"जब तुम पहले से ही इतनी खूबसूरत हो तो ये सब करने की क्या ज़रूरत है तुम्हें?" राहुल ने पहली बॉल में सिक्सर मार दिया था। उसके इस शॉट से नीलम के दिल में तालियों की कितनी गड़गड़ाहट हुई इसे केवल वह समझ पाएगा जिसने किसी को दिल की गहराई से चाहा हो।
"झूठ।" नीलम के गाल की लालिमा अपने आप बढ़ गई थी। लग रहा था जैसे वह परी बन गई हो और उड़कर कहीं भी जा सकती हो। उसका दिल हिरण की तरह कुलाँचें भरने लगा।
"एकदम सच।" राहुल ने कांच का गिलास टेबल पर रखते हुए कहा।
"वैसे और कोई बात नहीं है क्या करने के लिए?" नीलम ने विषय बदलने का प्रयास किया।
"है ना।"
"हाँ, तो वही करिये ना।"
"एक जगह ना बहुत प्यारी है..." नीलम उसकी बात ध्यान से सुन रही थी, "और उससे अपने आप धीमी सी रोशनी निकलती है। तुम्हारे माथे में जो तेज है ना डिवाइन वाला। सच! वो कभी कहीं देखने को नहीं मिला।"
"ओह गॉड! ये क्या कह रहे हो फिर से तारीफ़ शुरू कर दी। दूसरी भी बातें करो।" उसने अपना माथा पकड़ लिया। वह मना तो कर रही थी लेकिन वह कहना चाहती थी, "राहुल और... और करो मेरी तारीफ़। मुझे तुम्हारे मुँह से सुनना बहुत अच्छा लग रहा है। प्लीज राहुल रुको मत, करते रहो। तुम्हें नहीं पता कि मुझे कितना प्यारा लग रहा है। मुझे अंदर से गुदगुदी हो रही है राहुल, लेकिन तुम रुको मत प्लीज।" वह अपने दोनों पैर सटाकर उनकी अँगुलियों को फर्श पर रगड़ने लगी। उसका सीधा शरीर टेबल की तरफ झुक गया था शायद उसके कान उसकी हल्की सी आवाज़ भी सुनने के लिए बेताब हो रहे थे। उसकी आँखें राहुल की आँखों में झाँक रही थीं। उनके होंठों से शब्द निकलना बंद हो गए थे और आँखों की नयी भाषा शुरू हो गई थी।
"सर, डोसा मसाला।" वेटर ने प्लेट रखकर धीरे से कहा जिससे उन्हें डिस्टर्ब ना हो लेकिन उसे नहीं पता था कि जब दो लोग करीब से आँखों में आँखें डालकर एक दूसरे की साँसों की आवाज़ सुन रहे हों तब उसकी आवाज़ कितना डिस्टर्ब करेगी। नीलम ने खरासते हुए तुरंत अपनी पीठ सीधी की तो राहुल ने वेटर को गुस्से से देखा जो विलेन बनकर आ गया था।
"सर और कुछ लाना है क्या?"
यदि वह राहुल की पहुँच से बाहर ना होता तो उसे एक थप्पड़ ज़रूर जड़ देता लेकिन वह केवल घूर ही पाया था।
"सॉरी सर।" वेटर समझ गया कि उससे गलती हो गई थी लेकिन पिछले दस मिनट से उसका आर्डर तैयार था।
जारी है...
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