जिन रिश्तों को हमें ज़िन्दगी भर संभालकर रखना होता है उनमें से कई रिश्ते वक़्त की मशरूफियात और दूरियों के चलते दम तोड़ने लगते हैं। भला हो मोबाइल रेवोलुशन का जिसके चलते रिश्ते निभाने के लिए सोशल मीडिया ने आभासी दुनिया के जरिये जोड़ने की कोशिश की।
हम लगातार लक्ज़री लाइफस्टाइल की गुलामी में जकड़कर छोटी-छोटी खुशियों को खो रहे हैं। पहले टीवी में सिर्फ एक ही चैनल पर रामायण, महाभारत, चित्रहार और छायागीत देखकर दिल खुश हो जाता था तो अभी रिमोट दबाकर सैकड़ों चैनल बदल लेने पर भी सुकून नहीं मिलता। स्कूल जाते समय संतरे वाली पीपरमेंट और पारले-जी हाथ में आने से लगता था जैसे दुनिया मुट्ठी में कर ली हो लेकिन अब, अब तो कैडबरी डेरीमिल्क, चोकोबार, केक, पेस्ट्री खाकर भी दिल को तसल्ली नहीं मिलती...
कैंची, डंडा, कैरियर में बैठकर साईकिल चलाने का मज़ा किसी बादशाहत से कम नहीं था वहीं सीट में बैठकर चलाना अर्जुन की तरह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी माना जाता था। अब बच्चों की उम्र और साइज के हिसाब से साइकिलें आती हैं जिसमें गिरने की गुंजाइश ही नहीं रहती, सपोर्ट के लिए पीछे के पहिए में अलग से दो पहिए और लगे रहते हैं। उस समय का कैसे मुकाबला किया जा सकता है जब बिना गिरे सायकिल सीखने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे यहां तक कि कई लोगों के दूध के दाँत तो साईकिल से गिरकर ही टूटते थे। मोटर-साईकिल, कार ये सब हाई सोसायटी का बेंचमार्क हुआ करते थे। अभी तो एसी वाली महँगी एसयूवी या लंबी कार भी कुछ समय बाद फीकी लगने लगती है...
लॉकडाउन और सोशल डिस्टेन्सिंग ने तो सभी की लाइफस्टाइल बदल दी है। आप गैर जरूरी चीजों के लिए बाजार के चक्कर नहीं लगा सकते, दोस्तों के साथ महफ़िल नहीं जमा सकते और कम से कम चीज़ों से काम चलाना ही अभी प्रायोरिटी है।
इस समय जो भी त्योहार हो, महफ़िल हो या
फिर कोई पार्टी आप सोशल डिस्टेंसिंग के जरिये अपना और अपने परिवार का ध्यान रख सकते हैं।