नज़राना कैसा
किसी को चाहना हो तो आग लगाना कैसा
अपना बनाना हो तो फिर घबराना कैसा
हद से आगे बढ़कर रखते हैं ख्याल हम
फिर कोई ना समझ पाए तो समझाना कैसा
आग लगा भी देंगे अगर अपनों के घरों में
फिर अपनी मोहब्बत का ये नज़राना कैसा
करते हैं इश्क़ और रहते हैं दिल में हम
दुनिया को ज़ाहिर हो जाये तो जताना कैसा
तुम्हारे साथ जीने की तमन्ना में मिल रहे
हर पल जिया है दिल से वो नज़राना कैसा
महकते हैं जो रिश्ते गुलशन से बाहर भी
उन्ही पे हसरत का इलज़ाम लगाना कैसा
हम जैसे हैं वैसे ही अपना लोगे तुम अगर
तो दुनिया के कहकहे से फिर घबराना कैसा
नाज़ है हमे हर रूहानी रिश्ते पे साथी मेरे
दिल भी तुम्हारा गवारा ना दे तो मनाना कैसा
बेवकूफियां हमारी तुम ना समझ पाओगे कभी
ये मोहब्बत का तोहफा है नज़राना कैसा
-अज़ीम