हास्यम्
ताज्जुब होता है महिला दिवस पर...
पिछले कुछ समय से महिलाएँ इतनी तेजी से ओवरटेक कर आगे निकल गई हैं कि बेचारा पुरुष आँखे फाड़कर केवल घूरे जा रहा है। जब कहा जाता है कि आज महिलाएं भी पुरुषों की बराबरी कर रही हैं तो पीछे मुड़ कर देखना पड़ता है कि क्या सचमुच...?
बचपन में ही लड़कियां लड़कों से ज़्यादा तहजीब से पेश आती हैं, जल्दी बोलना सीखती हैं और ज्यादा समझदार होती हैं। इस दौर में लड़कियां कैसे लड़कों की बराबरी करें जो पहले से ही आगे हैं।
स्कूल में भी जाने क्यों और कैसे लड़के ही लड़कियों की बराबरी करते नज़र आते हैं बोर्ड के रिजल्ट में अधिकतर लड़कियां ही टॉप करती हैं तो फिर लड़कियाँ पीछे कैसे हैं। साल भर टीचर लड़कों की कुटाई करते रहते हैं उसकी तो चर्चा भी नहीं की हमने।
कॉलेज में भी बेचारे लड़के, पेट्रोल भराकर घुमाने, रिचार्ज करने और पानीपुरी खिला खिलाकर अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर देते हैं। जब जेब में पैसा ही नहीं तो चाय या पकौड़े की दुकान कैसे खोलें? बैंक भी क़र्ज़ पैसेवाले को ही देती है जो इनके पास होते ही नहीं हैं। बेचारे दर दर की ठोकर खाकर बड़ी मुश्किल से कोई काम ढूँढ पाते हैं वो भी मेहनत वाला जबकि लड़कियों के मेरिट सर्टिफिकेट देखकर दो-चार प्रयास में ही बढ़िया सा आरामदायक और गरिमामयी जॉब मिल जाता है।
शादी के पवित्र बंधन में भी आजकल पति का रौब कहाँ गया दिखाई ही नहीं देता। आप ही बताएं जो रिमोट से चैनल नहीं बदल सकता वो कितना सशक्त होगा। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि सीरियल देखने से उन्हें कौन रोक सकता है। 72 इंच की सोनी ब्राविया के बावजूद क्रिकेट तक बेचारों को पांच छः इंच के मोबाइल में देखना पड़ता है। इसके लिए तो हॉटस्टार और जियो टीवी कंपनी के लिए दिल से दुआ निकलती है। एक बात और अगर ये विकल्प ना होते तो क्रिकेट खेल ही विलुप्त जो गया होता।
चलो नए ज़माने की बात भी कर लें। सबसे ज़्यादा चर्चित फेसबुक में लड़कियां और महिलाएं कम फ्रेंड के बावजूद सैकड़ों लाइक और कमेंट पा जाती हैं वहीँ बेचारा पुरुष केवल इनके चक्कर में अपने फ्रेंड्स बढ़ाता है कि ज़्यादा लाइक्स मिलेंगे लेकिन नतीजा सिफर ही आता है। बेचारा तो इतना भी बहादुर नहीं होता कि किसी कुँए में जाकर छलांग लगा दे या ब्लू-व्हेल गेम ही खेल ले या फिर पंखे से लटक जाये। जब उसे कोई रास्ता नहीं सूझता तो बेचारा लड़कियों के नाम की आईडी और फोटो से काम चलाकर अपने लाइक्स और कमेंट बढ़ाता है। यहाँ सरकार की प्रशंसा करनी होगी कि फेसवूक के लिए अब तक आधार को लिंक नहीं करवाया वरना लाखों एंजेल प्रिया गायब हो गईं होतीं खैर वो महिला थी ही नहीं जिनका ज़िक्र दोबारा किया जाये।
फिर भी कुछ ऐसे पुरुष मानने को तैयार नहीं कि महिला इस युग में पुरुष से बहुत आगे निकल चुकी हैं। वो तो अब भी चारपाई में बैठकर खांसते हुए बहु के घूंघट पर नज़र रखे होंगे कि बहु कहीं बाहर तो नहीं जा रही। कहीं घूंघट तो नहीं हट गया। वो लोग अब भी घर के बाहर चटाई बिछाकर ताश खेलते हुए अपनी संस्कृति बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
बेचारे अब भी शारीरिक बल को शक्ति मानते आये हैं जो पुरुष को अधिक मिली है किंतु ईश्वर ने सुंदरता, सहनशक्ति और समझ तो महिला को ही अधिक दी है जिसके प्रभाव में दुनिया गोल गोल घूम रही है।
खैर, जो भी हो। महिला दिवस पर शुभकामनायें।