मोहब्बत है मुझे ऐसी
तुम्हें कुछ दूर जाना है, मुझे कुछ पास आना है
मुझे इतना बताना है, मेरा रिश्ता पुराना है।
मोहब्बत है मुझे ऐसी, हर एक शय में तुम्हें देखूँ
फ़लक का चाँद हो तुम तो, तुम्हें सबको मनाना है
मुनासिब ये नहीं है कि, बिना साहिल के छोड़ो तुम
रखो दिल में मेरे पत्थर, रिश्ता जन्मों का तोड़ो तुम
ये भी मुमकिन है कि दोनों, निभाते ही चले जाएं,
दरिया गहरा है रहने दो, हमें अब पुल बनाना है
तनहा मैं हूँ यहाँ पर और, वहाँ पे भी तनहा तुम हो
लिखे जो हमने किस्से हैं, उसके किरदार में तुम हो
रखके तकिए पर सिर मेरा, भटकता हूँ मैं ख्वाबों में
कहीं भी रोज़ मैं भटकूँ, तुम्हारा दिल ठिकाना है।
- अज़ीम
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