भरोसा है अगर खुदपर तो दुनिया से क्यों डरते हो
भरोसा है अगर खुदपर, तो दुनिया से क्यों डरते हो,
ज़िन्दगी दी है जब रब ने तो रो रोकर क्यों मरते हो?
मुश्किलें आती रहती हैं, राहे-रहबर के जानिब से,
वही रास्ता दिखाता है, तुम उसपर शक क्यों करते हो?
हम सब उसके ही मोहरे हैं जिसने तकदीर बनाई है।
वही मौका भी देता है, खुदखुशी कर क्यों मरते हो?
खुदा को छूना हो तुमको, मोहब्बत करना ही होगा,
बेशुमार वो ही देता है, इबादत कम क्यों करते हो?
खिलते जब फूल गुलशन में बहारें खुद आ जाती है,
वो तो खुशबु दे जाते है तोड़कर तुम क्यों धरते हो?
बेटियाँ नूर रहमत की, रोशन एक हर घर रखती हैं
अगर इतना समझते हो तो आह ठंडी क्यों भरते हो?
यहाँ रिश्तों ने धागे में पिरोये हैं हम सब को,
तो खुदगर्ज़ी के लालच में टूटकर क्यों बिखरते हो?
अगर रिश्ते समझना हो, अज़ीम इश्क़ करके तुम देखो,
मौत खुद हार जाती है, मोहब्बत कम क्यों भरते हो?
-अज़ीम 23 अगस्त 2017